Sunday, August 12, 2012

सारांश

चाँद की खूंटी पे टंगी रात 
रात की खूंटी पे टंगी नींद 
नींद की खूंटी पे टंगे सपनें 

सपनों की खूंटी पे टंगी आस 
आस की खूंटी पे टंगी साँस 
जीवन का सारांश ।

2 comments:

adee said...

hmmm
सब कुछ टंगा हुआ सा
कुछ अधर में लटका, कुछ उधर में

Kyra said...

@Adee yep