कभी थमे हुए, थके क़दमों से,
उठते हुए कभी
कभी गिर कर संभलते हुए,
उड़ते हुए कभी
कभी सहम के सिसक कर,
हँसते हुए कभी
कभी आसुओं का हाथ थामे,
खुशी के साथ कभी
कभी ग़मों की सिलाई से,
बुनती हूँ मै ताना बाना
एक नन्ही सी नज़्म का
जिसका नाम है
"मेरी ज़िन्दगी"
ओहड़े फिरुंगी जिसे
जब तक चलूंगी इस ज़मी पर
और छोड़ जाउंगी उतार कर
एक यादगार की तरह
जिस दिन,
निकलूंगी फिर एक नयी दुनिया के सफ़र पर|
7 comments:
oh my god meeta you have like jumped from writing one level of poetry to a completely different level..respect :) take a bow loved it
Beautiful words meeta :)
This is so very good!
The words, the meaning everything!
@ani coming from u..that's a very big compliment ani..Thanku so very much.
Probably u are reading my blog after a very long time...so the change is striking out..bt i have been growing bit by bit gradually...the progress is not as good as I'd like it to be..bt it's coming.
@surubhi thanku..u have been tortured ith 'em quite a bit :).
I can never thanku enough to be around :)
@nidhi Thanku for the read & the comment..glad u liked it.
hmmmm
हर ज़िन्दगी एक नज़्म ही तो है
कुछ बुने-अधबुने तानो-बानो की
कुछ पढ़ी अनपढ़ी सी
देखे अनदेखे ख्वाबों का ही तो नाम है ज़िन्दगी
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