जो ना मिला जीवन में,
पीछे उसके दौड़ते दौड़ते
ज़िन्दगी निकल जाती है
अंत में बस मुठी भर राख रह जाती है ||
पा लेने को तो,
सारा जहाँ है,
पर अंत में सबके हिस्से
बस छे ग़ज ज़मी ही आती है||
बैंक- बैलेंस, गाड़ी, बंगला, नौकर- चाकर...
चाह का अंत है नहीं कहीं |
पाने को ख़ुशी जीवन में
दो पल सुकून के ही काफी हैं ||
3 comments:
it is good.
a sentiment expressed by many before, but each time a new poet expresses, it feels my very own :)
ur Hindi is getting better, clearer. and i'm looking forward to more of u, in ur poems.
*hugs*
Hi, Meeta. Just wanted to say hello, friend.
good one.. thought provoking poem.. keep up the good work..!!
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