रात में ढलती सुबह
सुबह में गुम होती रात के बीच
सपनों की रफ़्तार से भागती
इस ज़िन्दगी में
dhundhti हूँ कुछ लम्हें सुकून के |
सुबह सुबह दौड़ते हुए
गरम टोस्ट और चाय की दो चुस्कियों में,
हडबडाहट में निगले
माँ के प्यार से भरे लंच के डब्बे में,
शाम की काफ्फी के अरोमा से
गुम होती दिनभर की थकान मे,
dhundhti हूँ कुछ लम्हें सुकून के |
कभी,
किताबों के पन्नो में छुपी कविता कहानियों में,
कभी,
दोस्तों के साथ बिताये लम्हों में,
कभी,
गानों की धुन में बहते हुए
कभी,
रात के सन्नाटे में बहती हवा के स्पर्श में,
कभी,
मोंसून की पहली बारिश में भीगते हुए,
कभी,
अपनी छोटी से दुनिया से परे बसी विशाल दुनिया
देखने की कल्पनाओं में,
dhundhti हूँ कुछ लम्हें सुकून के |
छोटी सी इस ज़िन्दगी में,
सब सपनों को जी जाने की
बहुत कुछ पाने और कर जाने की
इस मह्त्वकान्षा की दौड़ में
क्षणभर को थमकर
दूर से दुनिया के इस समंदर में,
बहती अनगिनत जिंदगियों की धाराओं की
छोटी छोटी खुशियों में
dhundhti हूँ कुछ लम्हें सुकून के |
9 comments:
I like it meeta....simple but full of emotion :)
@surubhi thank you :)
yeh to ghar ghar ki kahani lagti hai :D
nice :)
dear SD, u write well in Hindi as well :)
@Vivek sirji kuch samajh ni aaya aap kya kehna chah rahe h
@Ajay Thank you for the read :)
@HD at times but most of the i just struggle
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