Tuesday, June 21, 2011

कुछ लम्हें सुकून के

रात में ढलती सुबह 
सुबह में गुम होती रात के बीच 
सपनों की रफ़्तार से भागती 
इस ज़िन्दगी में 
dhundhti हूँ कुछ लम्हें सुकून के |

सुबह सुबह दौड़ते हुए 
गरम टोस्ट और चाय की दो चुस्कियों में,
हडबडाहट में निगले 
माँ के प्यार से भरे लंच के डब्बे में,
शाम की काफ्फी के अरोमा से  
गुम होती दिनभर की थकान मे,
dhundhti हूँ कुछ लम्हें सुकून के |

कभी,
किताबों के पन्नो में छुपी कविता कहानियों में,
कभी,
दोस्तों के साथ बिताये लम्हों में,
कभी,
गानों की धुन में बहते हुए 
कभी,
रात के सन्नाटे में बहती हवा के स्पर्श में,
कभी,
मोंसून की पहली बारिश में भीगते हुए,
कभी,
अपनी छोटी से दुनिया से परे बसी विशाल दुनिया
देखने की कल्पनाओं में, 
dhundhti हूँ कुछ लम्हें सुकून के |


छोटी सी इस ज़िन्दगी में,
सब सपनों को जी जाने की
बहुत कुछ पाने और कर जाने की 
इस मह्त्वकान्षा की दौड़ में 
क्षणभर को थमकर
दूर से
दुनिया के इस समंदर में,
बहती अनगिनत जिंदगियों की धाराओं की 
छोटी छोटी खुशियों में 
dhundhti हूँ कुछ लम्हें सुकून के |





9 comments:

Surubhi said...

I like it meeta....simple but full of emotion :)

Surubhi said...
This comment has been removed by the author.
Kyra said...

@surubhi thank you :)

Vivek said...

yeh to ghar ghar ki kahani lagti hai :D

Kaunquest said...

nice :)

delhidreams said...

dear SD, u write well in Hindi as well :)

Kyra said...

@Vivek sirji kuch samajh ni aaya aap kya kehna chah rahe h

Kyra said...

@Ajay Thank you for the read :)

Kyra said...

@HD at times but most of the i just struggle