रौशनी कि एक किरण को ढूँढा करते हैं|
दिन के उजालों में,
रात के अंधेरों कि आस मन में लिए फिरा करते हैं||
ग़मों के रेगिस्तान में,
ख़ुशी कि दो बूँद को तरसा करते हैं|
दो पल कि ख़ुशी मिल जाये,
तो उसके छीन जाने से डरा करते हैं||
दुनिया कि इस भीड़ में,
हम तन्हाई को तलब किया करते हैं|
पर अपनी ही तन्हाई से भाग कर,
हम दुनिया की भीड़ में छुप जाया करते हैं||
यूँ तो ये रूह भटकती है,
रात दिन मयखाने की तलाश में,
पर जो कोई राहगीर साकी मिल जाये,
बीच राह में, हाथ थाम कर,
मयखाने की गलियों में ले जाने को,
तो मुँह फेर कर राह बदल लिया करते हैं,
अकेले एक जाम की पनाहों में,
अश्क बहाने को||
दुनिया कि इस भीड़ में,
हम तन्हाई को तलब किया करते हैं|
पर अपनी ही तन्हाई से भाग कर,
हम दुनिया की भीड़ में छुप जाया करते हैं||
यूँ तो ये रूह भटकती है,
रात दिन मयखाने की तलाश में,
पर जो कोई राहगीर साकी मिल जाये,
बीच राह में, हाथ थाम कर,
मयखाने की गलियों में ले जाने को,
तो मुँह फेर कर राह बदल लिया करते हैं,
अकेले एक जाम की पनाहों में,
अश्क बहाने को||
7 comments:
The lonliness, the sadness it all echoes in these beautiful lines... very deep and very true :-)
loved it..esp the beginning and end..worth reading again n again
lets have a poetry jam session some time :)
beautiful thoughts and words! i loved it...especially the last part...
"अकेले एक जाम की पनाहों में,
अश्क बहाने को||"
keep writing the good stuff :)
@Vivek thanx...my official morale booster :)..thanx a lot :)
@serendipity glad you liked it neerjaji..thanku :)
@viti hehe..Jam session i will fail miserably..but it would fun trying..lets try one of these days.. and thanx for the comment and appreciation.
A nice take on how nothing satisfies us. :-)
Post a Comment