Sunday, February 21, 2010
रात के अंधेरों में,
रौशनी कि एक किरण को ढूँढा करते हैं|
दिन के उजालों में,
रात के अंधेरों कि आस मन में लिए फिरा करते हैं||
ग़मों के रेगिस्तान में,
ख़ुशी कि दो बूँद को तरसा करते हैं|
दो पल कि ख़ुशी मिल जाये,
तो उसके छीन जाने से डरा करते हैं||
दुनिया कि इस भीड़ में,
हम तन्हाई को तलब किया करते हैं|
पर अपनी ही तन्हाई से भाग कर,
हम दुनिया की भीड़ में छुप जाया करते हैं||
यूँ तो ये रूह भटकती है,
रात दिन मयखाने की तलाश में,
पर जो कोई राहगीर साकी मिल जाये,
बीच राह में, हाथ थाम कर,
मयखाने की गलियों में ले जाने को,
तो मुँह फेर कर राह बदल लिया करते हैं,
अकेले एक जाम की पनाहों में,
अश्क बहाने को||
दुनिया कि इस भीड़ में,
हम तन्हाई को तलब किया करते हैं|
पर अपनी ही तन्हाई से भाग कर,
हम दुनिया की भीड़ में छुप जाया करते हैं||
यूँ तो ये रूह भटकती है,
रात दिन मयखाने की तलाश में,
पर जो कोई राहगीर साकी मिल जाये,
बीच राह में, हाथ थाम कर,
मयखाने की गलियों में ले जाने को,
तो मुँह फेर कर राह बदल लिया करते हैं,
अकेले एक जाम की पनाहों में,
अश्क बहाने को||
Monday, February 15, 2010
Tuesday, February 2, 2010
वसंत
पंखुड़ियों को छुपाये बैठे थी हर कली,
संगीत संजोय मूक बन कर बैठे थे पंछी सभी,
ऑस रुपी आसुओं के भोझ से थकीं, मुरझा गयीं टहनियां सबहीं,
ठंडी हवा के थपेड़ों की मार से,
ठिठुर कर सहमी, टक टकी लगाये,
बैठी थी हर एक ज़िन्दगी,
इस इंतज़ार में ,
की कब कोहरे की चादर को हटाकर,
अपने गरम गरम हाथों से
सहलाएगी वसंत की धूप सुनहरी |
मुस्कुरा उठीं कलियाँ,
कहकहा उठे पंछी,
झूम उठीं फिर से टहनियां,
लहलहा उठा जीवन,
नाच उठी प्रकृति ,
ऋतुराज वसंत की नाद के ताल पर|
Monday, February 1, 2010
February....
February is back again. My favorite month of the year. The time moth heralding the beginning of spring.The time when after spending time in the company of bone chilling cold, the blanket of warm sunlight, piercing through cloud of fog, rejuvenates us again. When all the bounties, which Nature had hidden away, from the touch of cold winds, are released again. When the birds start singing, trees and flowers start blooming again. The time of the year, when warmth seeps through all living things, rejuvenating them. The time of the year when Love flows in the air connecting hearts with it’s tender touch.
The time of the year, when nature laughs and sings and beckons my soul to run into it’s open arms. When I can enjoy my solitary rambles through untamed wilderness, Gardens and Parks. When I can quietly lie down under a tree and slip away into the world dreams. When I can sit over the carpet of fallen leaves and grasses and spend time reading a book. When I can sit, watching the stars and moon all through the night.
So, just Slow down for a while, take a deep breath and look around yourself to watch this spectacle of celebration of Life….and take a moment and join in, because, After all, we all have but one Lifetime.
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