जो ना मिला जीवन में,
पीछे उसके दौड़ते दौड़ते
ज़िन्दगी निकल जाती है
अंत में बस मुठी भर राख रह जाती है ||
पा लेने को तो,
सारा जहाँ है,
पर अंत में सबके हिस्से
बस छे ग़ज ज़मी ही आती है||
बैंक- बैलेंस, गाड़ी, बंगला, नौकर- चाकर...
चाह का अंत है नहीं कहीं |
पाने को ख़ुशी जीवन में
दो पल सुकून के ही काफी हैं ||