Sunday, May 16, 2010


अश्कों की ज़बां होती, अगर,
बिखर जाता रात का सन्नाटा,
टूटे कांच के टुकड़ों की तरह तितर बितर  |

बयान कर पाते, 
बिलखती रूह की दास्ताँ, अगर,
दे जातीं ज़ख्म इतनें,
चीर के रात का दमन,
चीखें इन आंसुओं की, 
सुखा न पातीं जिन्हें मलहम कोई |

बहतें हैं, इसलिए ये आंसूं ,
गुपचुप अंधेरों में,
बहा ले जाने को,
रूह के इस दर्द भरे अफसाने को |

8 comments:

Blue Panther said...

Lots of feelings there! :-)

Kyra said...

@Neo yeah..thanks for the read :)

serendipity said...

Amazingly well written!! loved it!!

baavriviti said...

love it meeta! good work here.

Vjuneesh said...

बहुत ही खूबसूरती से जज्बातों को बयां किया है.. माशा अल्लाह !!

Kyra said...

@Serendipity thanku neerjaji :)

Kyra said...

@viti thanks for the read...but i'm nt happy with this poem.

Kyra said...

Vjuneesh thanku :)