अश्कों की ज़बां होती, अगर,
बिखर जाता रात का सन्नाटा,
टूटे कांच के टुकड़ों की तरह तितर बितर |
बयान कर पाते,
बिलखती रूह की दास्ताँ, अगर,
दे जातीं ज़ख्म इतनें,
चीर के रात का दमन,
चीखें इन आंसुओं की,
सुखा न पातीं जिन्हें मलहम कोई |
बहतें हैं, इसलिए ये आंसूं ,
गुपचुप अंधेरों में,
बहा ले जाने को,
रूह के इस दर्द भरे अफसाने को |
8 comments:
Lots of feelings there! :-)
@Neo yeah..thanks for the read :)
Amazingly well written!! loved it!!
love it meeta! good work here.
बहुत ही खूबसूरती से जज्बातों को बयां किया है.. माशा अल्लाह !!
@Serendipity thanku neerjaji :)
@viti thanks for the read...but i'm nt happy with this poem.
Vjuneesh thanku :)
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